सिद्धार्थ त्रिपाठी। कुमाऊं यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कुमाऊं के ऊपरी इलाकों में की गई रिसर्च में एक दिल दहलाने वाली बात सामने आई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर वाले क्षेत्रों 77 नई झीलें बनकर तैयार हो गई हैं। उत्तराखंड में हर साल कभी आपदा तो कभी भूकंप तो कभी जमीनों के फटने से कोई ना कोई तबाही आती रहती है। मौजूदा समय में जोशीमठ की वजह से न केवल उत्तराखंड बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक भी घबराए हुए हैं। सरकार अभी जोशीमठ की परिस्थितियों से निपट ही रही थी कि अब कुमाऊं यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च ने सरकार की नींद उड़ा कर रख दी है। कुमाऊं यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कुमाऊं के ऊपरी इलाकों में की गई रिसर्च में इस बात का अध्ययन किया है कि ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में एक दो नहीं बल्कि 77 नई झीलें बनकर तैयार हो गई हैं। यह झीलें इतनी खतरनाक हैं कि अगर टूटने लगी तो कुमाऊं का एक बड़ा हिस्सा तबाह हो जाएगा। कुमाऊं यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के वैज्ञानिक डॉक्टर डी.एस. परिहार ने जी.आई.एस. रिमोट सेंसिंग और सेटेलाइट के माध्यम से इस बात का खुलासा किया है कि कुमाऊं के ऊपरी क्षेत्रों में कई झीलें बनकर तैयार हो गई हैं। यह झीलें इसलिए भी खतरनाक हैं क्योंकि उत्तराखंड के खासकर कुमाऊं में लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं। इतना ही नहीं तापमान के बढ़ने से भी इन झीलों के किनारे भी कमजोर हो गये हैं। अचानक से पानी नीचे आने की वजह से कुमाऊं का एक बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में आ सकता है। परिहार ने अपने शोध में यह बताया है कि अगर समय रहते इससे नहीं निपटा गया तो जिस तरह की तबाही देश ने केदारनाथ में देखी उसी तरह का मंजर कुमाऊं में भी देखने को मिल सकता है। यह हालात गर्मियों के दिनों में इसलिए भी और ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि ऊपरी इलाकों का भी तापमान बढ़ रहा है। जिससे बर्फ तेजी से पिघलकर नीचे की ओर बढ़ रही है। रिसर्च में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि यह झीलें आजकल में नहीं बल्कि बीते 10 सालों से बन रही हैं। इनमें से कई झीलें टूटी भी हैं तभी कुमाऊं के एक हिस्सों में कई बार फ्लैश फ्लड देखा गया है। कई गांव इसकी मार झेल चुके हैं। अध्ययन में यह पाया गया है कि ग्लेशियरों के आसपास 77 झील बनकर तैयार हो गई हैं।इनका व्यास 50 मीटर से भी ज्यादा बताया जा रहा है। मिलम ग्लेशियर में 36 झील बनकर तैयार हो गई हैं। मरतोली ग्लेशियर में छह झील बनी हैं। लावा ग्लेशियर में तीन झीलें बनी हैं। रालम ग्लेशियर में 25 झीलें बन गई हैं। गुफा ग्लेशियर में भी एक झील की पुष्टि हुई है। गुफा में बनी झील सबसे बड़ी झील बताई जा रही है, जो लगभग 2.71 किलोमीटर की है। कुमाऊं के ऊपरी हिस्सों में बनी इस झील का अध्ययन पहले भी होता रहा है, लेकिन इतनी अधिक झीलों की पुष्टि पहली बार हुई है। बताया जाता है कि इन 77 झीलों से कुमाऊं के लुमती, साना,भदेली, सेरा,गीचाबगड़, मादकोट,देवीबगढ़, सहित लगभग 2200 छोटे बड़े गांव को सीधे तौर पर खतरा है। अगर यह पानी तेजी से नीचे आता है तो कुमाऊं के कई जिले भी इससे प्रभावित हो सकते है। जिसमें पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा, नैनीताल जैसे जिले शामिल हैं। उत्तराखंड के गोरी गंगा घाटी में यह पहले भी कई बार तबाही मचा चुकी हैं। बताया जाता है कि साल 2010, 2013, 2014, 2016 और साल 2019 में इन झीलों के पानी की ही वजह से आपदा का दंश झेल चुके हैं। आज भी ये गांव प्रभावित हैं। उत्तराखंड के केदारनाथ में भी इसी तरह की झील की वजह से साल 2013 में भारी तबाही आई थी। जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। ऐसे में वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर इन झील का पानी धीरे-धीरे नीचे आता है या किसी की देखरेख में इसे डिस्चार्ज किया जाता है तो हो नुकसान को कम किया जा सकता है। मगर इस समय जो चिंता की बात हो है वो इन झीलों की संख्या के साथ ही गर्मी के मौसम की है। मई और जून की गर्मी जैसे-जैसे बढ़ेगी वैसे-वैसे बर्फ के पिघलने का सिलसिला और तेजी से चलेगा। ऐसे में इन झीलों का पानी जैसे ही ओवरफ्लो होगा वैसे ही यह तेजी से नीचे की तरफ रुख करेगा। ऐसा नहीं है कि सरकार को इस बात की जानकारी नहीं है। सरकार के पास भी इस तरह की रिपोर्ट पहले भी आ चुकी है। आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा बताते हैं कि उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों में विशालकाय ग्लेशियर हैं।समय-समय पर इनकी मॉनिटरिंग की जाती है। कुमाऊं में जिस बात की चर्चा हो रही है उसको ध्यान में रखते हुए जल्द ही एक टीम ऊपरी इलाकों का दौरा करेगी। यह जानने की कोशिश करेगी कि इन झीलों से कोई खतरा तो नहीं है। हमारा आपदा प्रबंधन विभाग और जिला प्रशासन लगातार हर जिले में ऊपरी हिस्सों पर नजर बनाए रखता है। किसी भी शोध और अध्ययन को नजरअंदाज नहीं किया जाता है।
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