हरिद्वार। जिला चिकित्सालय हरिद्वार में एक नेत्र चिकित्सक का मामला सामने आया हैं। जो पिछले तीन सालों से मरीजो को चिकित्सा सुविधा देने के स्थान प्रमुख अधीक्षक केे कार्यालय में बैठकर आराम फरमा रहे हैं। इतना ही नहीं डाक्टर साहब का मई माह में टिहरी में तबादला हो चुका हैं। बावजूद उसके नेत्र चिकित्सक पहाड़ चढ़ने को तैयार ही नहीं हैं बल्कि जुगाड़बाजी से अपने तबादला निरस्त होने के इंतजार में हैं। डॉक्टरों और विभागीय अफसरों की लड़ाई में मरीज पिस रहे हैं। चिकित्सकों के अभाव पहाड़ी क्षेत्रों के अस्पतालों में मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि तबादले के बाद से नेत्र चिकित्सक यहीं जमा हैं तबादला स्थल पर डॉक्टर ने विभागीय अधिकारियों से सांठ-गांठ के चलते अभी तक कार्यभार ग्रहण नहीं किया है और न हीं विभागीय अधिकारियों ने तबादला हुए नेत्र चिकित्सक को नवीन तैनाती स्थल के लिए रिलीव ही किया हैं। विगत तीन सालों में नेत्र चिकित्सक ने अस्पताल में क्या चिकित्सा सेवा दी हैं इस विषय की जानकारी भी कोई सरकारी रिकार्ड में उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन कमाल देखिए उत्तराखण्ड में ऐसे अधिकारिायों का जो सरकारी फरमानों को तो ठेंगे पर रख ही रहें हैं साथ ही बिना किसी कार्य किए ही मुफ्त की तनख्वाह ले सरकारी सुविधाओं का मजा ले रहें हैं।
तीन साल के कार्यकाल में नेत्र चिकित्सक ने जो सूचना दी है , वह बड़ी हैरतभरी और उनकी आराम की तनख्वाह की गवाही देने के लिए काफी हैं। सूचना के अधिकार में दी गई जानकारी में नेत्र चिकित्सक के रिकार्ड के लिए हाउस कीपर की ओर से लोक सूचना अधिकारी के नाम से दिए लिखित पत्र में कथन किया गया हैं कि इमारत जर्जर और बारिश से आई सीलन से रिकार्ड क्षतिग्रस्त होने के कारण, उन्हें उठाया जाना और छायाप्रति दिया जाना संभव नहीं हैं।
अब इस मामले को लेकर पीपुल्स फॉर एनीमल यूनिट प्रभारी आदित्य शर्मा ने उत्तराखण्ड के स्वास्थ्य मंत्री सहित स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को नेत्र चिकित्सक पर अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगाते हुए कार्रवाही के लिए पत्र लिखा हैं। अपने बचाव में नेत्र चिकित्सक द्वारा हाउस कीपर से लिया गया पत्र साफ जाहिर दाल काली हैं और कितनी काली हैं यह सब जांच के बाद साफ हो पाएगा।
वहीं सीएमओं हरिद्वार ने मामला संज्ञान में आने के बाद जल्द नेत्र चिकित्सक को नवीन तैनाती पर भेजे जाने की बात कह रहे हैं।
गौरतलब है कि तबादलों को लेकर उत्तराखंड में अफसरों की पहली च्वाइस मैदानी क्षेत्र की होती है। ज्यादातर अफसर मैदानी क्षेत्रों को अपनी पहली पसंद में रखते हैं। वहीं पहाड़ों की दुर्गम स्थितियों समेत अन्य कारणों के चलते कोई भी अधिकारी पहाड़ों पर तैनाती का इच्छुक नहीं है ।