सिद्धार्थ त्रिपाठी। ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचिता माना जाता है पर फिर भी न तो उनकी कोई पूजा करता है न उनके कोई बहुत जगहों पर मन्दिर है जिसका कारण है सिर्फ ब्रह्मा जी द्वारा बोला गया एक झूठ। क्या है इसके पीछे कि कथा आईए जानते है
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में विवाद हो रहा था कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है?
ब्रह्मा-विष्णु का विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों युद्ध करने लगे। एक-दूसरे पर दिव्यास्त्रों के वार करने लगे। दोनों देवताओं का युद्ध देखकर अन्य देवता घबरा गए। सभी देवता शिव जी के पास पहुंचे और देवताओं ने शिव जी से कहा कि आप इन दोनों को जल्दी रोकें, वर्ना सृष्टि के लिए संकट खड़ा हो जाएगा।
सभी देवताओं की बात मानकर शिव जी एक अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के बीच प्रकट हुए।
अग्नि स्तंभ को देखकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने तय किया कि जो भी इस स्तंभ का अंतिम छोर खोज लेगा, वही श्रेष्ठ होगा। ब्रह्मा जी स्तंभ के ऊपरी भाग में गए और विष्णु जी नीचे वाले हिस्से में गए।
जब विष्णुको स्तंभ का अंतिम छोर नहीं मिला तो वे लौट आए, लेकिन दूसरी तरफ ब्रह्मा जी ने खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए एक योजना बनाई।
ब्रह्मा जी ने स्तंभ में केतकी का एक फूल देखा। केतकी के फूल से ब्रह्मा जी ने कहा तू मेरे साथ बाहर चल और बाहर निकलकर बोल देना कि मैंने इस स्तंभ का अंतिम छोर खोज लिया है।
केतकी के फूल ने ब्रह्मा जी की बात मान ली। स्तंभ से बाहर निकलकर केतकी के फूल ने झूठ बोल दिया कि ब्रह्मा जी ने इस स्तंभ का अंतिम छोर ढूंढ लिया है।
जैसे ही केतकी के फूल ने ये झूठ बोला, वहां शिव जी प्रकट हो गए। शिव जी ने ब्रह्मा जी के झूठ को पकड़ लिया था। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया। तब से ब्रह्मदेव पंचमुख से चार मुख के हो गए।
विष्णु जी ने शिव जी शाप वापस लेने का निवेदन किया तो शिव जी ने उनकी बात मानते हुए कहा कि अब से यज्ञ में ब्रह्मा जी को गुरु के रूप में स्थापित किया जा सकेगा।
ब्रह्मा जी के बाद शिव जी ने केतकी के फूल से कहा कि तूने झूठ में साथ दिया और झूठ बोला है, इसलिए अब से तू मेरी पूजा में वर्जित रहेगा।