सिद्धार्थ त्रिपाठी। नवरात्र में अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। देवी के भक्तो का मानना है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृधि का वरदान देती हैं। नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है । नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिरूप को पूजने के बाद ही भक्तो का नवरात्र व्रत पूरा होता है।
जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं। शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को भी महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है। जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती , उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है।
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। लोगो का मानना है कि माता दो वर्ष की कन्या के पूजन से दुख और दरिद्रता दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है और पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।
कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर देना चाहिए। मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं। कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए। उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें। ईस प्रकार कन्या पूजन से माता रानी प्रसन्न होती है और अपने भक्तो की ईच्छा पूरी करती है।