
धीरज शर्मा। नवरात्र का आज चौथा दिन है। देवीभागवत पुराण के अनुसार इस दिन देवी के चौथे स्वरूप माता कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। माता का यह स्वरूप देवी पार्वती के विवाह के बाद से लेकर संतान कुमार कार्तिकेय की प्राप्ति के बीच का है। इस रूप में देवी संपूर्ण सृष्टि को धारण करने वाली और उनका पालन करने वाली हैं। संतान की इच्छा रखने वाले लोगों को देवी के इस स्वरूप की पूजा आराधना करनी चाहिए। सांसारिक लोगों यानी घर परिवार चलाने वालों के लिए इस देवी की पूजा बेहद कल्याणकारी है कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा अवतार में प्रकट हुईं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की है। ऐसी मान्यता है कि पूजा के दौरान उनको कुम्हड़े की बलि दी जाए तो वे अत्यधिक प्रसन्न होती हैं। ब्रह्माण्ड और कुम्हड़े से उनका जुड़ाव होने कारण वे कुष्मांडा के नाम से विख्यात हैं।मां कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कहा जाता है क्योंकि उनकी आठ भुजाएं हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल है। वहीं एक और हाथ में वे सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला धारण करती हैं। माता कुष्मांडा सिंह पर सवार होती हैं।
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
ब्रह्मांड की रचना करने के कारण इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। ये सृष्टि की आदिस्वरूपा आदिशक्ति हैं। अष्टभुजा देवी के रूप में पूजी जाने वाली कूष्मांडा की अर्चना से साधक का मन अनाहत चक्र में स्थित होता है।नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना करने से आयु, यश,बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवी कूष्मांडा को आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति का रूप माना गया है। कूष्मांडा मां की आराधना से भक्तों के सारे रोग, दोष मिट जाते हैं और उसके यश और शक्ति में वृद्धि होती है. सिंह पर सवार मां का स्वरुप काफी अद्भुत और निराला है।कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। मां के पास इनके अलावा हाथ में अमृत कलश भी है। सिंह की सवारी करने वाली मां की भक्ति करने से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है। कूष्मांडा देवी योग और ध्यान की देवी भी हैं। देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है। उदराग्नि को शांत करने वाली देवी का मानसिक जाप करें। देवी कवच को पांच बार पढ़ना चाहिए। माता कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाना चाहिए। इससे भक्तों की बुद्धि और कौशल का विकास होता है।