सिद्धार्थ त्रिपाठी। भगवान शिव के पास आपने डमरू अवश्य देखा होगा। इसका इतिहास वेदों और पुराणों में मिलता है। इसे पुराणों में नादन वा नादिका भी कहा गया है, जो कि शिव के तांडव नृत्य का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। शिव के तांडव के समय डमरू के ध्वनि का महत्त्वपूर्ण रोल होता है। डमरू को उपयोग आदि गुरू शंकराचार्य भी अपने विद्यार्थियों के ध्यान को फोकस करने के लिए इस्तेमाल करते थे। वह इसे अपने शिष्यों के मन को शुद्ध करने और उन्हें ध्यान में लगाने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग करते थे। धार्मिक दृष्टिकोण से, डमरू को शिव के साथ जोड़ा जाता है और इसे उनके अभिन्न हिस्से के रूप में माना जाता है। इसका उपयोग आध्यात्मिक साधना और ध्यान में भी किया जाता है।डमरू का हिन्दू, तिब्बती और बौद्ध धर्म में बहुत महत्व माना गया है। भगवान शंकर के हाथों में डमरू को दर्शाया गया है। साधु और मदारियों के पास अक्सर डमरू मिल जाएगा। शंकु आकार के बने इस ढोल के बीच के तंग हिस्से में एक रस्सी बंधी होती है जिसके पहले और दूसरे सिरे में पत्थर या कांसे का एक-एक टुकड़ा लगाया जाता है। जब डमरू को बीच में से पकड़कर हिलाया जाता है तो यह डला (टुकड़ा) पहले एक मुख की खाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिससे ‘डुग-डुग’ की आवाज उत्पन्न होती है। इसीलिए इसे डुगडुगी भी कहते हैं। भगवान शिव के डमरू को लेकर पुराणों में कई कथाएं है। एक कथा के अनुसार भगवान शिव डमरू के साथ प्रकट हुए थे। फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि को रात 12 बजे मध्यरात्रि बेला में एक बार कैलाश पर्वत पर नटराज भगवान् ने नृत्य की समाप्ति पर लय-ताल के रूप में चौदह बार अपना डमरू बजाया, ताकि सनकादि सिद्ध, ऋषि मुनि एवं सृष्टि के सभी देवों व मनुष्यों आदि का उद्धार हो सके। एक अन्य कथा के अनुसार, माता सरस्वती के प्रकट होने के साथ ही सृष्टि में ध्वनि का संचार हुआ। बिना स्वर और संगीत के ये ध्वनि कार्य विहीन थी। तब भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू घुमाया, जिससे ध्वनि में व्याकरण और संगीत से छंद व ताल का उत्पन्न हुआ। जब डमरू बजता है तो उसमें से चौदह तरह के आवाज निकलते हैं। पुराणों में इसे मंत्र माना गया। यह आवाज इस प्रकार है:- ‘अइउण्, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्, ञमड.णनम्, भ्रझभञ, घढधश्, जबगडदश्, खफछठथ, चटतव, कपय्, शषसर, हल्। उक्त आवाजों में सृजन और विध्वंस दोनों के ही स्वर छिपे हुए हैं। पुराणों अनुसार भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। कहते हैं कि यह मंत्र कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। कोई भी कठिन कार्य हो शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। उक्त मंत्र या सूत्रों के सिद्ध होने के बाद जपने से सर्प, बिच्छू के काटे का जहर उतर जाता है। ऊपरी बाधा हट जाती है। माना जाता है कि इससे ज्वर, सन्निपात आदि को भी उतारा जा सकता है। डमरू की ध्वनि जैसी ही ध्वनि हमारे भीतर भी बजती रहती है। इसे अ, उ और म या ओम कहते हैं। हृदय की धड़कन और ब्रह्मांड की आवाज में भी डमरू के स्वर मिले हुए हैं। डमरू की आवाज लय में सुनते रहने से मस्तिष्क को शांति मिलती है और हर तरह का तनाव हट जाता है। इसकी आवाज से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियां भी दूर हो जाती है। डमरू भगवान शिव का वाद्ययंत्र ही नहीं यह बहुत कुछ है। लोक मान्यता यह भी है कि इसे बजाकर भूकंप लाया जा सकता है और बादलों में भरा पानी भी बरसाया जा सकता है। डमरू की आवाज यदि लगातर एक जैसी बजती रहे तो इससे चारों और का वातावरण बदल जाता है। यह बहुत भयानक भी हो सकता है और और सुखदायी भी। डमरू के भयानक आवाज से लोगों के हृदय भी फट सकते हैं। कहते हैं कि भगवान शंकर इसे बाजाकर प्रलय भी ला सकते हैं। यह बहुत ही प्रलयंकारी आवाज सिद्ध हो सकती है। डमरू की आवाज में कई रहस्य छिपे हुए हैं।
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