
सिद्धार्थ त्रिपाठी। हरिद्वार का दक्षिण काली मंदिर सिद्धपीठ है। मान्यता है कि मां काली के आदेश पर गुरु कामराज ने 108 नरमुंडों के ऊपर मंदिर निर्माण करवाया। यह स्थान भगवान शिव के विषपान से भी जुड़ा है। कहते है कि मां के इस सिद्धपीठ की महिमा कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर से कम नहीं है।
खड्ग खप्पर वाली के इस धाम से सागर मंथन की कथा भी जुड़ती है। जब देव और दानव सागर को मथ रहे थे तभी कालकूट विष निकला था। जिससे सारे संसार में त्राहिमाम मच गया था। तब महादेव ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। जहर के प्रभाव से शिव के कंठ में भयंकर ज्वालाएं उत्पन्न हो गई तब महादेव ने इसी स्थान पर आकर स्नान किया था। शिव ने गंगा की जिस मुख्य धारा में स्नान किया, वह विष के प्रभाव से नीली हो गई। गंगा की उसी धारा को ही नीलधारा कहते हैं। इसी नीलधारा के तट पर मां का ये मन्दिर स्थिति है।
माना जाता है कि स्वय काल भैरव करते हैं इस काली पीठ की रक्षा। कलकत्ता के काली और शिव भक्त गुरु कामराज ने मां की मूर्ति को यहां स्थापित किया था तभी से यहां पर मां काली लोगों की मनोकामनाएं पूरी करती आ रही हैं। लोगो का मानना है कि ऐसा मन्दिर या तो कोलकाता में है या फिर हरिद्वार में।
काली के इस चमत्कारिक धाम को लेकर कई कथाएं मिलती है जो सिद्धपुरुष कामराज से जुड़ती है इसीलिए मां का ये धाम कामराज पीठ, अमरा गुरु और दक्षिण काली के नाम से भी जाना जाता है। इसी स्थान पर कामराज जी ने मां काली से साक्षात्कार किया था तथा इस मंदिर की स्थापना कामराज गुरु ने मां काली के आदेश पर करी थी। मां काली ने कामराज को स्वप्न दिया कि इस मंदिर की स्थापना मेरी इच्छा से करो। मां ने कामराज गुरु से कहा कि इस मंदिर की स्थापना 108 नर मुंडों से होगी। तब गुरू कामराज ने कहा कि माता मैं 108 नरमुंड कहा से लाऊंगा? तब मां कालिका ने कहा कि ये महामशान है, यहां पर आने वाले मुर्दो को तुम जीवित करो जब वो जीवित हो जाएं तो उनकी इच्छा से 108 नरमुंडों की बलि दो। तब मां काली की आज्ञानुसार गुरू कामराज ने इस मूर्ति की स्थापना की। इस गंगातट पर मन्दिर में मां काली की प्रतिमा कहां से आई ये कोई नहीं जानता लोक मान्यता है कि यहां माता की प्रतिमा लाखों साल से है जो स्वयंभू है और गुरू कामराज को इसी स्थान पर मिली थी।
मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है माता उसके बड़े से बड़े विघ्न दूर कर देती है। मां के इस दरबार में शनिवार के दिन मां काली बड़े से बड़ा संकट दूर करती है। इस दिन माता रानी का पसंदीदा खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. माई को नारियल, गुलाब पुष्प, काला जामुन, मीठा पान भी अर्पण किया जाता है। नवरात्र के दिनों में यहां मां काली की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। लोक मान्यता के अनुसार दुनिया में जितने भी वाम मार्गी, दक्षिण मार्गी तंत्र साधना के साधक है वो जब तक सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर नहीं जाएंगे तब तक उनकी साधना अधूरी रहेगी।