पिथौरागढ़। पर्वतीय राज्य कहलाने वाले उत्तराखंड के राज्य पशु कस्तूरी मृग अब शिकारियों के निशाने पर है। यही वह समय है जब निचली घाटियों में इस दुर्लभ जानवर को शिकारी अपना शिकार बना लेते हैं। नाभि में पाई जाने वाली कीमती कस्तूरी के चलते ही इस मासूम जानवर पर शिकारियों की नजरें रहती हैं। उत्तराखंड के तीन सीमांत जिले पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और चमोली में 11 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई वाले बर्फ से घिरे इलाकों में स्वच्छंद विचरण करने वाला कस्तूरी मृग उच्च हिमालय में भारी हिमपात होने पर नौ हजार फीट तक नीचे उतर आता है। हिमालय में करीब 7500 फीट तक मानव बस्तियां भी हैं। शीतकाल में नीचे उतरते ही मानव और कस्तूरा मृग के बीच की दूरी कम हो जाती है। इसको लेकर सबसे ज्यादा सतर्क शिकारी हो जाते हैं। शिकारी इनके वास स्थल के आसपास आग लगाकर इन्हें शिकार बना लेते हैं।
पिथौरागढ़ जिले में आने वाली पंचाचूली पर्वत श्रृंखला के बेस कैंप का इलाका कस्तूरी मृग के शिकार के लिए कुख्यात रहा है। शिकारी बेस कैंप के आसपास आग लगाकर इस निरीह जानवर को घेर कर उसे अपना शिकार बना लेते हैं। बेस कैंप काफी दुरुह क्षेत्र है। जंगली और खतरनाक रास्तों से होकर ही यहां पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए करीब दो दिन का समय लगता है। यही जटिलता शिकारियों के लिए इस क्षेत्र को सेफ जोन बना देती है। पंचाचूली क्षेत्र के आसपास इन दिनों धुआं दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि शीतकाल में जंगलों में शिकारी आग लगा रहे हैं। शिकारियों की सक्रियता की आशंका को लेकर वन विभाग भी सक्रिय हो गया है।
कस्तूरी मृग का शिकार उसकी नाभी में पाई जाने वाली कस्तूरी के लिए किया जाता है। केवल नर कस्तूरा में पाई जाने वाली एक ग्राम कस्तूरी की कीमत खुले बाजार में 25 से 30 हजार रुपये बताई जाती है। कस्तूरी का शिकार इसलिए होता है कि क्योंकि इससे मिलने वाली कस्तूरी की डिमांड देश-विदेश में जबरदस्त है। एक मृग में 10 से 12 ग्राम तक कस्तूरी मिलती है। वन क्षेत्राधिकारी एलएस पांगती के अनुसार कस्तूरी का उपयोग दमा, खांसी, श्वास संबंधी रोग, जोड़ों के रोग, बुखार, हृदय संबंधी रोगों के उपचार में बहुतायत में किया जाता है। उत्तराखंड के तीन पहाड़ी जिलों में वर्ष 2016 में वाइल्ड लाइफ फेडेरेशन ने इनकी गणना कराई थी। तब इनकी संख्या दो हजार के आसपास बताई गई थी। अगली गणना अब 2026 में कराई जाएगी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के चीन से लगे इलाकों में ही कस्तूरा मृग की बसासत पाई जाती है। उत्तराखंड ने इसे अपना राजकीय पशु बनाया है। पिथौरागढ़ के धरमघर में कस्तूरा मृग प्रजनन केंद्र भी बनाया गया है।
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