
धीरज शर्मा।चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन घंटे के कंपन के समान मन की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर भक्तों के भाग्य को समृद्ध करती हैं। असफल व्यक्ति प्रायः अपने मन में ही उलझा रहता है। मन के नकारात्मक विचार एवं ऊर्जा दुखों को बढ़ावा देती है। अस्त-व्यस्त मानव मन, जो विभिन्न विचारों भावों में उलझा रहता है, मां चंद्रघंटा की आराधना कर सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाकर दैवीय चेतना का साक्षात्कार करता है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र है। इनके दस हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में कमल का फूल, दूसरे में कमंडल, तीसरे में त्रिशूल, चौथे में गदा, पांचवें में तलवार, छठे में धनुष और सातवें में बाण है। शेष तीन हाथों में एक हाथ हृदय पर, एक आशीर्वाद मुद्रा में और एक अभय मुद्रा में रहता है। ये रत्न जड़ित आभूषण धारण करती हैं। गले में सफेद फूलों की माला रहती है। चंद्रघंटा का वाहन बाघ है। देह धारियों में इस शक्ति रूप का स्थान मणिपुर चक्र है। साधक इसी मणिपुर चक्र में अपना ध्यान पहुंचाता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं। इनका स्वरूप दानव, दैत्य, राक्षसों को कंपाने वाला तथा इनकी प्रचंड ध्वनि उनकी हिम्मत पस्त कर देने वाली होती है। इनकी चंद्र घंटे की ध्वनि बुरी शक्तियों को भागने पर मजबूर करती है। इसके विपरीत साधकों और भक्तों को इनका स्वरूप शांत और भव्य दिखाई देता है। इनकी • आराधना से साधक में न केवल साहस और निर्भयता का, बल्कि सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां के इस रूप को दूध या उससे बने पदार्थों का भोग लगाएं।