सिद्धार्थ त्रिपाठी। भगवान शिव की साधना के लिए सबसे उत्तम माना जाने वाला पावन श्रावण मास 14 जुलाई 2022 से लेकर 12 अगस्त 2022 तक रहेगा। जिसमें कांवड़ यात्रा की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से प्रारंभ होकर 26 जुलाई 2022 तक चलेगी। हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा का बहुत ज्यादा महत्व है क्योंकि इसमें हजारों-लाखों की संख्या में शिव भक्त गंगा नदी से पवित्र जल भरकर शिव मंदिर पर चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता है कि गंगा जल से रुद्राभिषेक करने पर महादेव उनकी बड़ी से बड़ी मनोकामना पलक झपकते पूरी कर देते हैं। कांवड़ यात्रा पर निकलने वाले शिव भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। आइए कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व, इससे जुड़ी कथा और नियम के बारे में विस्तार से जानते है। कांवड़ यात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं।
मान्यता है कि जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने पीकर कंठ में ही रोक लिया तो उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए. इसके बाद उस विष के चलते भगवान शिव के गले में एकत्रित हुई नकारात्मक ऊर्जा बन गई जिसे दूर करने के लिए शिव का परम भक्त रावण कांवड़ में गंगाजल लेकर लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने पहुंचा और उनका अभिषेक किया । लोक मान्यता है कि इसके बाद भगवान शिव को विष के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिली। कुछ लोगो का मानना है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार अपने माता पिता की इच्छा पूरी करने के लिए कांवड़ यात्रा की थी । वह अपने माता पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार ले गए थे और वहां जाकर उन्होंने माता पिता को गंगा में स्नान करवाया और वापस लौटते समय श्रवण कुमार गंगाजल लेकर आए और उन्होंने व उनके माता पिता ने इस जल को शिवलिंग पर चढ़ाया। तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। इसके अलावा कुछ लोगों का मत यह भी है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल भरकर शिवलिंग पर चढ़ाया था। इसके बाद से कावड़ यात्रा की शुरूआत हुई। भगवान शिव की साधना से जुड़ी पावन कांवड़ यात्रा में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। जिसे शिव भक्त अपनी आस्था, समय और सामर्थ्य के अनुसार करता है। इनमें तीन तरह की कांवड़ यात्रा अभी प्रचलन में है। 1. खड़ी कांवड़-
शिव भक्त अपने आराध्य भगवान शंकर के लिए जल इकट्ठा करने के वास्ते कांवड़ को अपने कंधे पर लेकर पैदल यात्रा करते जाते हैं। खड़ी कांवड़ को सबसे कठिन कांवड़ यात्रा माना जाता है क्योंकि इस कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को कहीं जमीन पर नहीं रखा जाता है। यात्रा के दौरान यदि किसी कांवड़िए को भोजन या आराम करना होता है तो वह इसे किसी दूसरे कांवड़िए को थमा देता है या फिर किसी स्टैंड पर टांग देता है।खड़ी कांवड़ यात्रा में एक कांवड़िए की मदद के लिए कई दूसरे सहयोगी साथ चलते हैं। 2. डाक कांवड़- डाक कांवड़ के जरिए शिव भक्त अपने आराध्य भगावन शिव के जलाभिषेक वाले दिन तक लगातार बगैर रुके चलते हैं। इस यात्रा में भोले के भक्त शिवधाम की दूरी एक निश्चित समय में शिव भजन पर गाते-झूमते हुए तय करते हैं। 3. झांकी वाली कांवड़- वर्तमान समय में भगवान शिव की भव्य झांकी बनाकर कांवड़ यात्रा का प्रचलन बढ़ा है। झांकी वाली कांवड़ में कांवड़िए किसी खुले वाहन में भगवान शिव का दरबार सजाकर गाते-बजाते हुए इस पावन यात्रा को पूरी करते हैं। भगवान शिव की कृपा बरसाने वाली पावन शिवरात्रि इस साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानि 26 जुलाई 2022 को मनाई जाएगी। इस दिन देवों के देव महादेव को जल चढ़ाने के लिए शुभ मुहूर्त सायंकाल 07:23 बजे से प्रारंभ होकर 09:27 मिनट तक रहेगा। भगवान शिव से मनचाहा वरदान पाने के लिए व्यक्ति को इस दिन महादेव की चार प्रहर की साधना करनी चाहिए। शिवरात्रि पर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से साधक पर शीघ्र ही शिव कृपा बरसती है।
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July 27, 2024