भोपाल। एक बाप ने अपने ही बीस साल के बेटे के डीएनए टेस्ट कराया, उसके बाद अपना बेटा माना। युवा बेटे को जब सच्चाई पता चली तो उसने अब अपने पिता के साथ रहने से ही इंकार कर दिया। इस तरह से पति-पत्नी के अहंकार ने युवा बेटे की फजीहत करा दी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, शादी के 21 साल बाद एक पत्नी को अपने 20 वर्षीय बेटे को अधिकार दिलाने के लिए डीएनए टेस्ट कराना पड़ा। शादी के कुछ माह बाद परिवार में क्लेश होने पर पति ने गर्भवती पत्नी से दूरी बढ़ा ली। पत्नी ने बेटे काे जन्म देकर माता के साथ बेटे को पिता का भी दुलार देने की कोशिश की। 15 साल बाद पोते के प्रति मोह जागने पर ससुर ने पोते को हासिल करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। तकरार बढ़ने पर दहेज एक्ट का मुकदमा कायम हुआ। पत्नी ने भी भरण–पोषण का अधिकार मांगा, तो गुस्से में पति ने अदालत में तलाक की अर्जी लगा दी। हद तो तब हो गई जब पति ने बेटे को अपना होने से ही मना कर दिया। अदालत ने डीएनए टेस्ट कराया। इस अग्नि परीक्षा में पत्नी पवित्र साबित हुई। इसके बाद कुटुंब न्यायालय ने तलाक की अर्जी खारिज कर दी। माता–पिता के दांपत्य जीवन में पड़ी दरार के बीच आज उनका बेटा बीस साल का हो गया है। मामले में कुटुंब न्यायालय की अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश शशिकांता वैश्य की बेंच ने तलाक के केस को खारिज किया। बेंच ने फैसले में पति को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने पत्नी को 21 साल से शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। साथ ही बेटे व पत्नी को भरण-पोषण भी नहीं दिया। पति अपनी जिम्मेदारी से बचता रहा। अब पत्नी को करीब 13 हजार रुपये प्रतिमाह देना होगा। साथ ही बेटे के पढ़ाई का खर्च भी देना होगा।पति-पत्नी के इस मामले में बेटा परेशान होता रहा। जिस पिता को उसने कभी देखा ही नहीं और मन में अच्छी छवि बनाए रखा। उस पिता ने जब उसे बेटा मानने से इंकार कर दिया, तब उसे बहुत दुख हुआ और अब वह पिता के साथ नहीं रहना चाहता है। मालूम हो कि सरकारी नौकरी में पदस्थ युवक की सात मार्च 2000 को शादी हुई । छोटे-छोटे मनमुटाव के कारण दोनों सितंबर 2000 में अलग-अलग रहने लगे। इसके बाद पंच एवं परिचार के सामने 2005 को दोनों अलग हो गए। पत्नी को पूरा सामन और जेवर सबकुछ दे दिया गया। पंचों की सहमति से दोनों अलग रह रहे थे। पत्नी 21 साल से इस इंतजार में थी कि बेटे के मोह में पति उसे साथ ले जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2015 में पति ने पत्नी के खिलाफ तलाक का केस लगाया। वहीं पत्नी ने भी भरण-पोषण का केस लगाया और निर्णय पत्नी के पक्ष में हुआ।
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