सिद्धार्थ त्रिपाठी। अपने सुहाग की रक्षा के लिए महिलाएं हर साल हरतालिका तीज का व्रत रखती है। धार्मिक दृष्टि से ये व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि पर रखा जाता है। हरतालिका तीज पर इस साल शुक्ल योग के साथ रवि योग, हस्त नक्षत्र व चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। महिलाएं निर्जला व्रत रख सुख व सौभाग्य की कामना करेंगी। यह पूजा विशेष तौर पर सुबह और शाम के समय की जाती है। आइए जानते हैं पूजा का सही मुहूर्त, व पूजा की विधि-
आज हरतालिका तीज की पूजा का मुहूर्त सुबह 06:02 बजे से 08:33 मिनट तक है। इस समय में व्रती महिलाएं पूजा न कर पाएं, तो वह शाम को सूर्यास्त होने के बाद प्रदोष काल शुरू होने पर भी कर सकती हैं। इस दिन सूर्यास्त का समय 06:36 बजे बताया गया है। इस समय व्रती महिलाएं समूह में बैठकर हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनती हैं। हरतालिका तीज के दिन अभिजीत मुहूर्त 11:54 बजे से दोपहर 12:44 मिनट तक है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है कि शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था।
मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी।
उसके बाद माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं।
यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया।
माता के कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे।
फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे. इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया, तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।
हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल यानी कि दिन-रात के मिलने का समय। हरतालिका तीज के दिन इस प्रकार शिवसंध्या के समय फिर से स्नान कर साफ और सुंदर वस्त्र धारण करें। इसके बाद गीली मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं।
दूध, दही, चीनी, शहद और घी से पंचामृत बनाएं। सुहाग की सामग्री को अच्छी तरह सजाकर मां पार्वती और शिव जी को अर्पित करें। अब हरतालिका व्रत की कथा सुनें। इसके बाद सबसे पहले गणेश जी और फिर शिवजी व माता पार्वती की आरती उतारें। फिर भगवान की परिक्रमा करें। रात को जागरण करें।
सुबह स्नान करने के बाद माता पार्वती का पूजन करें और उन्हें सिंदूर चढ़ाएं। फिर ककड़ी और हल्वे का भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद ककड़ी खाकर व्रत का पारण करें। सभी पूजन सामग्री को एकत्र कर किसी सुहागिन महिला को दान दें।
हरतालिका तीज व्रत के पारण से पहले पानी की एक बूंद भी ग्रहण करना वर्जित है। इस व्रत में पानी नहीं पिया जाता. यह व्रत निर्जला रखा जाता है।