धीरज शर्मा।आधुनिकता की दौड़ में जमाना हाइटेक हो रहा है तो आस्था भी इससे अछूती नहीं रही। फाल्गुनी कांवड़ में परंपरा के साथ आधुनिकता का समावेश भी कुछ ऐसा ही नजारा पेश आ रहा है। फाल्गुन कांवड़ यात्रा में पहले बहुत कम यात्री आते थे किंतु अब इनकी संख्या बढऩे लगी है। फाल्गुन मास की कांवड़ यात्रा में बुजुर्ग, महिलाएं व युवा सहित बच्चे भी पहुंचते हैं जबकि इसकी अपेक्षा श्रावण मास की कांवड़ यात्रा का अधिक महत्व है।श्रावण व फाल्गुन मास में साल में दो बार कांवड़ यात्रा होती है। श्रावण मास की यात्रा का धार्मिक महत्व अधिक है। फाल्गुनी कांवड़ में पहले बहुत कम कांवडिय़े पहुंचते थे लेकिन, धीरे-धीरे इसका क्रेज भी शिव भक्तों के सिर चढ़ रहा है।अब तक परंपरानुसार कांवडिय़े भगवा वस्त्रों में आते थे। समय के साथ आधुनिक परिधानों में कांवडिय़े आने लगे हैं।एक दशक पहले तक गांव देहात के बुजुर्ग किसान ही फाल्गुनी कांवड़ के लिए पहुंचते थे। अब युवा कांवड़ लेने के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। फाल्गुन कांवड़ में भी डाक कांवड़ की भागमभाग संस्कृति भी नजर आने लगी है।फाल्गुनी कांवड़ में बिजनौर, मुजफ्फरनगर, नजीबाबाद, धामपुर, हिमाचल, स्यौहारा, मुरादाबाद, हल्दौर आदि क्षेत्रों से कांवडिय़े पहुंचते हैं जबकि श्रावण मास में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बुलंदशहर, पश्चिम यूपी से ज्यादा कांवडिय़े आते हैं।
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December 23, 2024
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