सिद्धार्थ त्रिपाठी। यह बात तो सर्वविदित है कि भगवान शिव जी भगवान राम को अपना इष्ट मानते है एवं भगवान राम शिव जी को अपना इष्ट मानते हैं। परन्तु क्या आप जानते है कि भगवान शिव और राम जी के बीच भी एक बार भयंकर युद्ध हुआ था ? आईए जानते है कि इसका कारण क्या था ?
पुराणों के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ के दौरान भगवान राम और भगवान शिव के बीच युद्ध हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया और इस यज्ञ के अश्व को कई राज्यों में भेजकर राज्यों को श्री राम की सत्ता के अधीन किया जा रहा था। इस दौरान यज्ञ का अश्व देवपुर पहुंचा, जहां के राजा वीरमणि थे। जिन्होंने तपस्या कर अपने अराध्य भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे वरदान मांगा था कि भगवान शिव स्वयं उसके राज्य की रक्षा करें। ऐसे में देवपुर की रक्षा स्वंय भगवान शिव करते थे इसलिए कोई भी उस राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था।
जब यज्ञ का अश्व राजा वीरमणि के राज्य में पहुंचा तो राज के पुत्र रुक्मांगदन ने अश्व को बंदी बना लिया। ऐसे में युद्ध होना तय था। भगवान शिव ने अपने भक्त को जब मुसीबत में देखा तो राजा वीरभद्र की मदद के लिए नंदी और भृंगी सहित अपने सभी गणों को भेज दिया। ऐसे में युद्ध के दौरान एक तरफ भगवान राम की सेना थी और दूसरी ओर भगवान शिव की सेना थी। युद्ध में वीरभद्र में राम सेना के पुष्कल का मस्तक काट दिया। वहीं भृंगी ने श्री राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। इसके बाद हनुमान जी भी नंदी के शिवास्त्र से पराभूत होने लगे तो उन्होंने भगवान राम को याद किया।
अपने भक्तों की पुकान सुनकर भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और भरत के साथ वहां पहुंचे फिर उन्होंने शत्रुघ्न और हनुमान जी को शिव गणों से मुक्त कराया और शिव गणों पर धाव बोल दिया। जब भगवान शिव ने देखा कि उनके सभी गण परास्त हो रहे हैं तो वह स्वंय युद्ध में आए और फिर भगवान राम व शिव के बीच युद्ध हुआ।
भगवान राम और भगवान शिव के बीच हुए भयंकर युद्ध में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर शिव से कहा, कि “हे प्रभु, आपने ही ने मुझे यह वरदान दिया था कि आपके द्वारा प्रदान इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता।इसलिए हे महादेव यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं इस अस्त्र का प्रयोग आप पर करता हूं.’ ये कहते हुए भगवान श्रीराम ने वह अस्त्र शिवजी पर चला दिया जो कि सीधे शिवजी के हृदय में लगा। भगवान शिव ने श्रीराम से कहा कि आपने मुझे इस युद्ध से संतुष्ट किया है इसलिए आप जो चाहे वरदान मांग सकते हैं। तब भगवान राम ने कहा कि इस युद्ध में मेरे भाई भरत के पुत्र पुष्कल सहित कई लोग वीरगति को प्राप्त हो गए है कृपया उन्हें जीवनदान दें। भगवान शिव ने तथास्तु कहा और शिव जी की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व लौटा दिया।