धीरज शर्मा।नवरात्रि के सप्तम दिन कालरात्रि की उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं और आप अग्नि, जन्म, जंतु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाती है। मां कालरात्रि भक्तों के लिए ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हैं। मां का कालरात्रि स्वरुप अति भयावह व उग्र है। मां कालरात्रि नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश करके भक्तों को दानव, दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत आदि से अभय प्रदान करती हैं। मां का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। घने अंधेरे की तरह एकदम गहरे काले रंग वाली तीन नेत्रों वाली, सिर के बाल बिखरे रखने वाली और नाक से आग की लपटों के रूप में सांसे निकालने वाली कालरात्रि, मां दुर्गा का सातवां विग्रह स्वरूप है। इनके तीनों नेत्र ब्रह्मांड के गोले की तरह गोल हैं। इनके गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित होती है। इनके चार हाथ हैं। मां कालरात्रि भक्तों को शुभ फल ही देती हैं। इनका वाहन गधा है। ये स्मरण करने वाले को शुभ वर प्रदान करती हैं। उनकी रक्षा के लिए हथियार भी रखती हैं। योगी साधकों द्वारा कालरात्रि का स्मरण ‘सहस्त्रार’ चक्र में ध्यान केंद्रित करके किया जाता है। कालरात्रि मां के चार हाथों में से दो में शस्त्र रहते हैं। एक हाथ अभय मुद्रा में तथा एक वर मुद्रा में रहता है। दाहिनी ओर का ऊपर वाला हाथ हंसिया अथवा चंद्रहास खड्ग धारण करता है, जबकि नीचे वाले हाथ में कांटेदार कटार रहती है। मां का ऊपरी तन लाल रक्तिम वस्त्र से तथा नीचे का आधा भाग बाघ के चमड़े से ढका रहता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने से शोक मुक्त रहने का वरदान प्राप्त होता है और भक्तों के पास दरिद्रता नहीं आती है।
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