धीरज शर्मा।उत्तराखंड सरकार ने सरकारी स्कूलों में बच्चों को भगवद् गीता का ज्ञान देने का निर्णय लिया है।जिसके तहत आगामी शैक्षणिक सत्र से श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाएगा, लेकिन उससे पहले सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक का वाचन शुरू करवा दिया गया है।जहां एक ओर सरकार इसे बेहतर पहल करार दे रही है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में सरकार के इस पहल का विरोध भी शुरू हो गया है।शिक्षकों ने प्रार्थना सभा में बच्चों को गीता के श्लोक पढ़ाने का विरोध किया है। एससी, एसटी शिक्षक एसोसिएशन ने इस मामले में शिक्षा निदेशक को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि यह धार्मिक ग्रंथ है। संविधान के मुताबिक शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती।शिक्षक एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा ने कहा, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28(1) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि पूर्णतः या आंशिक रूप से सरकारी निधि से संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती। यह व्यवस्था देश की धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान की भावना को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।प्रार्थना सभा में गीता के श्लोक बढ़ाए जाने का निर्देश संविधान में दी गई व्यवस्था का उल्लंघन करता है। जो सरकारी स्कूलों में धर्म निरपेक्ष शिक्षा के सिद्धांत को कमजोर करता है। सरकारी स्कूलों में विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के छात्र अध्ययनरत हैं। किसी एक धार्मिक ग्रंथ के श्लोकों को अनिवार्य रूप से लागू करना अन्य धर्मावलंबियों और समुदायों के बीच असहजता एवं भेदभाव की भावना को जन्म दे सकता है, जो सामाजिक समरसता और समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों के विपरीत है।एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन, इस निर्देश का पुरजोर विरोध करता है। इस तरह के निर्देश को वापस लिया जाना चाहिए। एसोसिएशन का मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समावेशी मूल्यों को बढ़ावा देना है, न कि किसी विशेष धार्मिक ग्रंथ को प्रोत्साहित करना है।
आपको बताते चलें कि राज्य सरकार का मानना है कि छात्र-छात्राओं को बेहतर शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा की जानकारी देना भी जरूरी है। ताकि बच्चों में नैतिकता, जीवन मूल्य, अनुशासन, तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके।श्रीमद्भगवद्गीता को जीवन के हर क्षेत्र में रास्ता दिखाने वाला माने जाने के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है।क्योंकि, श्रीमद्भगवद्गीता न सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ है। बल्कि, ये इंसानी जीवन के विज्ञान, मनोविज्ञान एवं व्यवहार शास्त्र का भी उत्कृष्ट ग्रंथ है।जिसमें इंसान के व्यवहार, निर्णय क्षमता, कर्तव्यनिष्ठा, तनाव प्रबंधन के साथ विवेकपूर्ण जीवन जीने के वैज्ञानिक तर्क मौजूद हैं। स्कूलों में छात्र-छात्राओं को एक बेहतर नागरिक बनाए जाने के लिहाज से श्रीमद्भगवद्गीता एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।उत्तराखंड के तमाम सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ाए जाने के सवाल पर सीएम पुष्कर धामी ने कहा कि कलिकाल में भगवद् गीता एक ऐसा शास्त्र एवं ग्रंथ है जिसको पढ़ने से कलिकाल के प्रभाव से बच जाता है। ऐसे में व्यक्ति नियम, संयम में रहने के साथ ही उसका आत्मबल भी बढ़ता है।हर प्रकार से न्याय प्रिय होकर समभाव से काम करता है।ऐसे में भागवत गीता पढ़ने से बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार आएंगे।
वहीं इस मामले में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने सरकार के उद्देश्यों पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने के साथ ही इस मामले में सरकार पर ध्रुवीकरण की राजनीति शुरू करने का आरोप लगाते हुए कहा कि माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से जारी आदेश के दो पहलू हैं। पहला राज्य सरकार की कोई ऐसी नीयत नहीं है कि गीता का ज्ञान बच्चों को सिखाया जाए और उनकी आचरण में उसकी झलक हो। जबकि, सरकार का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि किसी भी तरह से धार्मिक आधार पर कोई विवाद हो।ताकि, भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति प्रदेश में शुरू हो, लेकिन सनातन धर्म को मानने वालों का श्रीमद्भगवद्गीता एक धार्मिक ग्रंथ है।इस ग्रंथ में जीवन जीने का रास्ता उपदेश के जरिए बताया गया है। जबकि, हर धर्म के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, ऐसे में यह आदेश सिर्फ विवाद का विषय बनाने के मकसद से जारी किया गया। बहराल स्कूलों में शुरू हुई इस व्यवस्था के बाद ही अब न सिर्फ विपक्षी दल बल्कि, अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
