सिद्धार्थ त्रिपाठी। पितृपक्ष में अधिकतर लोग अपने घर पर ही ब्राह्मणों को भोजन करवारकर श्राद्ध करते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि तीर्थ स्थानों पर जाकर अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं और वहां उनका श्राद्ध करते हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ तीर्थ स्थानों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जहां के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां आकर पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वायु पुराण के साथ गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में पितरों के लिए गया तीर्थ का महत्व सबसे अधिक माना गया है। श्राद्ध कर्म करने के लिए यह स्थान सबसे पवित्र माना जाता है। पुराणों में यह स्थान मोक्ष की भूमि और मोक्ष स्थली कही जाती है। कहते हैं यहां आकर पितरों का श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उसके बाद स्थान आता है बदरीनाथ में स्थित ब्रह्मकपाल घाट का। इसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां किया गया पिंडदान गया से भी आठ गुना अधिक फलदायी है। कहते हैं यहां आकर अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए पूर्वजों का श्राद्ध करने से उनके आत्मा को तत्काल मुक्ति मिलती है। यहां भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। यह स्थान बदरीनाथ धाम से कुछ ही कदम की दूरी पर अलकनंदा के तट पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां पांडवों ने भी महाभारत युद्ध में मारे गये परिजनों की मुक्ति के लिए पिंडदान किया था।
भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हरिद्वार जहां लोग अपने पूर्वजों के अस्थि विजर्सन के लिए जाते हैं, यहां पर श्राद्ध करने से भी पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। यहां गंगा नदी स्नान करने से जहां सारे पाप धुल जाते हैं तो वहीं नारायणी शीला, कुशा घाट, हर की पैडी, आदि स्थानों पर पितरों के नाम का पिंडदान करने से उनकी आत्मा प्रसन्न होती है और आपको आशीर्वाद देती है।
गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर पितरों का तर्पण करना श्रेष्ठ माना जाता है। इलाहाबाद में पितृपक्ष का बहुत बड़ा मेला लगता है। यहां पर दूर-दराज से लोग आकर पिंडदान करते हैं और पितरों के मोक्ष के लिए कामना करते हैं।
भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में भी सरयू नदी के तट पर पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करने से उनकी आत्मा को मुक्ति मिलती है। यहां सरयू नदी के किनारे स्थित भात कुंड पर हर साल कर्म कांड का आयोजन होता है। यहां आकर पहले लोग पवित्र नदी में स्नान करते हैं और उसके बाद अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करते हैं।
भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में यमुनाजी के तट पर भी हर साल लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं। यहां पर वायुतीर्थ में पिंडदान किया जाता है। इसके अलवा विश्रनी तीर्थ और बोधिनी तीर्थ में भी पिंडदान करने लोग जाते हैं। मान्यता है कि यहां चावल और आटे का पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
राजस्थान का धार्मिक स्थल पुष्कर भी श्राद्ध कर्म के लिए जाना जाता है। यहां पर ब्रह्माजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यहां की पवित्र झील के बारे में यह पौराणिक मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई है। यहां पर 52 घाट हैं जहां पर हर साल पिंडदान करने लोग दूर-दूर से आते हैं।
महाकाल की नगरी उज्जैन में बहती शिप्रा नदी का उद्गम भगवान विष्णु के शरीर से हुआ है। यहां बने घाटों पर हर साल श्राद्ध कर्म करने वालों की भारी भीड़ देखी जाती है। महाकाल की नगरी में श्राद्ध करने से पितृ पूर्ण तृप्त होते हैं।
इसके अलावा भगवान शिव की नगरी काशी में पितरों का श्राद्ध करना परम पुण्यदायी माना गया है। कहते हैं कि काशी में प्राण त्यागने वाले को यमलोक नहीं जाना पड़ता है। वैसे ही यहां पर श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा को परम शांति की प्राप्ति होती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर गंगा नदी के तट पर कर्मकांड होते हैं।