
धीरज शर्मा।बसंत पंचमी का पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। बसंत पंचमी इस त्योहार के मौके पर बाजारों में बिरंगी पतंग भी दुकानों पर सजी नजर आती है। उत्तराखंड के हरिद्वार की बात करें तो पतंगों की दुकान पर एक से एक पतंग ग्राहकों की मांग पर बाजार में उतारे गए है। जिसे लोग खरीद भी रहे हैं।पतंग का क्रेज धीरे-धीरे खत्म हो रहा था।बच्चे मोबाइल और डिजिटल संसाधनों से खुद को मनोरंजन कर रहे हैं जिससे बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास अच्छे से नहीं हो पा रहा है। लेकिन आज की तारीख की बात करें तो अब अभिभावक भी चाहते हैं कि उनके बच्चे पतंग के साथ खेलें जिससे उनका पूर्ण विकास हो सके।यही कारण है कि रांची में पतंगों की बिक्री बढ़ी है।हरिद्वार की उपनगरी कनखल में दो छोटे बच्चों ने बेहद आकर्षक पतंगों का निर्माण किया है। कनखल निवासी 13 वर्षीय कृष्ण और हर्ष नाम के बच्चों ने कंकाल रूपी पतंग का निर्माण करने की बात बताते हुए बताया कि पतंगों में कुछ अलग करने करने की चाहत ने इन पतंग का निर्माण कराया है। इनके द्वारा बनाई गई पतंग बेहद आकर्षक नजर आ रही है। साथ ही इन्होंने चाइनीस डोर का बहिष्कार करने एवं सादे मांझे से पतंग उड़ाने की बात कही। आपको बताते चलें कि आकाश में तैरती रंग-बिरंगी पतंगें भला किसे अच्छी नहीं लगतीं? एक डोर से बंधी हवा में हिचकोले खाती पतंग कई अर्थो में हमें अनुशासन सिखाती है। जरा उसकी हरकतों पर ध्यान तो दीजिए, समझ जाएंगे कि मात्र एक डोर से वह किस तरह से हमें अनुशासन सिखाती है। अनुशासन कई लोगों को एक बंधन लग सकता है। सच यह है कि यह अपने आप में एक मुक्त व्यवस्था है, जो जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए अतिआवश्यक है। बरसों बाद जब मां अपने बेटे से मिलती है, तब उसे वह कसकर अपनी बांहों में भींच लेती है। क्या थोड़े ही पलों का वह बंधन सचमुच बंधन है? क्या आप बार-बार इस बंधन में नहीं बंधना चाहेंगे? यहां यह कहा जा सकता है कि कितना सुख है बंधन में! यही है अनुशासन। अनुशासन को यदि दूसरे ढंग से समझना हो, तो हमारे सामने पतंग का उदाहरण है। पतंग काफी ऊपर होती है, डोर ही होती है, जो उसे संभालती है। कभी पतंग को आपने आकाश में मुक्त रूप से उड़ान भरते देखा है! क्या कभी सोचा है कि इससे जीवन जीने की कला सीखी जा सकती है। पतंग का यह त्योहार अपनी संस्कृति की विशेषता ही नहीं, वरन आदर्श व्यक्तित्व का संदेश भी देता है। आइए जानें पतंग से जीवन जीने की कला किस तरह सीखी जा सकती है। पतंग का आशय है अपार संतुलन, नियमबद्ध नियंत्रण, सफल होने की ललक और हालात के अनुकूल होने की अद्भुत जिजीविषा। वास्तव में तीव्र स्पर्धा के इस युग में पतंग जैसा व्यक्तित्व ही उपयोगी साबित हो सकता है। पतंग मुक्त आकाश में विचरने की मानव की सुषुप्त इच्छाओं की प्रतीक है, परंतु वह आक्रामक एवं जोशीले व्यक्तित्व की भी प्रतीक है। पतंग का कन्ना संतुलन की कला सिखाता है। इसमें थोड़ी-सी लापरवाही होने पर पतंग यहां-वहां डोलती है। यानी सही संतुलन नहीं रह पाता। इसी तरह हमारे व्यक्तित्व में भी संतुलन न होने पर जीवन गोते खाने लगता है। व्यक्तित्व में भी संतुलन होना परम आवश्यक है। पतंग से सीखने लायक दूसरा गुण है नियंत्रण। खुले आकाश में उड़ने वाली पतंग को देखकर लगता है कि वह अपने-आप ही उड़ रही है। लेकिन उसका नियंत्रण डोर के माध्यम से उड़ाने वाले के हाथ में होता है। डोर का नियंत्रण ही पतंग को भटकने से रोकता है। हमारे व्यक्तित्व के लिए भी एक ऐसी ही लगाम की आवश्यकता है। निश्चित लक्ष्य से दूर ले जाने वाले अनेक प्रलोभन रूपी व्यवधान हमारे सामने आते हैं। इस समय स्वैच्छिक नियंत्रण और अनुशासन ही हमारी पतंग को निरंकुश बनने से रोक सकता है। पतंग की उड़ान भी तभी सफल होती है, जब प्रतिस्पर्धा में दूसरी पतंग के साथ उसके पेंच लड़ाए जाते हैं। पतंग के पेंच में हार-जीत की जो भावना देखने में आती है, वह शायद ही कहीं और देखने को मिले। पतंग किसी की भी कटे, खुशी दोनों को ही होती है। पतंग का आकार भी उसे एक अलग ही महत्व देता है। हवा को तिरछा काटने वाली पतंग हवा के रुख के अनुसार अपने आपको संभालती है। आकाश में अपनी उड़ान को कायम रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहने वाली पतंग हवा की गति के साथ मुड़ने में जरा भी देर नहीं करती। हवा की दिशा बदलते ही वह भी अपनी दिशा तुरंत बदल देती है। इसी तरह मनुष्य को परिस्थितियों के अनुसार ढलना आना चाहिए। जो अपने आप को हालात के अनुसार नहीं ढाल पाते, वे आउटडेटेड बन जाते हैं और हमेशा गतिशील रहने वाले एवरग्रीन होते हैं। यह सीख हमें पतंग से ही मिलती है। पतंग हमें परवाज का सबक सिखाती है।