धीरज शर्मा।विश्व प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम के कपाट भैया दूज के पावन पर्व पर रविवार यानि आज 12.05 मिनट पर अभिजीत मुहूर्त में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गए हैं. जिसके बाद शीतकाल में छह माह तक मां यमुना के दर्शन शीतकालीन प्रवास खुशीमठ खरसाली गांव के किए जाएंगे.बताया कि यमुनोत्री धाम के कपाट भैया दूज के पावन पर्व पर अभिजीत मुहूर्त में 12 बजकर 5 मिनट पर मकर लग्न, अनुराधा नक्षत्र एवं सौभाग्य योग में शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं. इसके बाद शनि देव की डोली की अगुवाई में मां यमुना की उत्सव डोली अपने शीतकालीन प्रवास खरसाली गांव के लिए रवाना हुई।जिसके बाद मां यमुना की डोली देर शाम को खरसाली गांव में यमुना मंदिर में विराजमान होगी।खरसाली गांव में मां यमुना की उत्सव डोली को लेकर ग्रामीणों में खासा उत्सव दिखा।यहां ग्रामीणों ने यमुना का मंदिर फूल मालाओं से सजाया है।देश विदेश से आने वाले श्रद्धालु मां यमुना के दर्शन छह माह तक उनके शीतकालीन प्रवास खरसाली गांव में कर सकेंगे।आपको बताते चलें कि यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3235 मी० ऊँचाई पर स्थित वह स्थान है जहाँ से यमुना नदी निकलती है। यह देवी यमुना का निवास स्थल भी है। यहाँ पर देवी यमुना का एक मंदिर है। यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ भी है और चार छोटे धामों में से एक है। इसे सूर्यपुत्री, यम सहोदरा और गंगा-यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है। ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्तरी को “यमुना प्रभव” तीर्थ कहा गया है। ॠग्वेद मे यमुना का उल्लेख है। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी, तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है। यमुनोत्तरी से 4 मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है। यमुनोत्तरी मंदिर के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीया को खोले जाते और कार्तिक माह की यम द्वितीया को बंद कर दिए जाते हैं। यमुनोत्तरी मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन १८८५ ईस्वी में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है।
भूगर्भ से उत्पन्न ९० डिग्री तक गर्म पानी के जल का कुंड सूर्य-कुंड और पास ही ठन्डे पानी का कुंड गौरी कुंड यहाँ सबसे उल्लेखनीय स्थल हैं| यमुनोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में गर्मजल के अनेक सोते है। ये सोते अनेक कुंडों में गिरते हैं इन कुंडों में सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्यकुंड है। यह कुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।
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