धीरज शर्मा।स्कूलों में मोटी फीस और किताबों व स्कूल ड्रेस के नाम पर कमीशनखोरी से अभिभावकों की कमर टूट रही है। उच्च शिक्षा की तो बात क्या है।प्रारम्भिक शिक्षा शुरू करने वाले बच्चे पर भी इतना खर्च हो रहा है कि घर का मासिक खर्च एक तरफ और एक महीने की फीस तथा कापी किताबों की कीमत एक तरफ।यह स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इसके बावजूद विभाग और सरकार की खामोशी समझ से बाहर है। एक तरफ शिक्षा को हर किसी तक पहुंचाने के लिए शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू हो रहे है और दूसरी तरफ शुरुआत की सामान्य पढ़ाई देखकर तो दिन में ही तारे नजर आ रहे है।इन दिनों स्कूलों में दाखिलों का दौर चल रहा है।नए सत्र से कई स्कूलों ने फीस भी बढ़ा दी है, तो ऐसे में अभिभावकों की जेब पर बोझ बढ़ना भी तय है।महंगाई ने पहले ही जीना मुहाल किया हुआ है। ऐसे में शिक्षा के बढ़ते खर्च ने अभिभावकों होश उड़ा दिए है। स्कूल का किताबों व ड्रेसों की दुकानों से सीधा कमीशन का समझौता है। यही वजह है कि स्कूल संचालकों ने किताबों व ड्रेसों की दुकानों को चिन्हित कर रखा है। इस दुकान के अलावा किसी दूसरी दुकान पर किताबें व ड्रेसे नहीं मिल पाएंगी। बात चाहे इसमें शहर के नामी स्कूलों की हो या फिर दूसरे पब्लिक स्कूलों की कई स्कूल तो अपने ही स्कूल से किताबें व ड्रेसे बेच रहे हैं। कमीशन का खेल इतना गहरा हो गया है कि पेन, पेसिल से लेकर पूरा कोर्स खरीदने पर अभिभावकों से मोटी रकम वसूल की जा रही है। अभिभावकों से वसूल की जाने वाली मोटी रकम का हिस्सा स्कूल संचालकों की जेब तक पहुंच रहा है।
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